पूजा-नमाज़ ही नहीं कर्म के प्रति समर्पण भी धर्म है

बीमार की जान बचाना डॉक्टर और दुश्मन को गोलियों से छलनी करना सैनिक का धर्म
-मानवता से प्रचीन व बड़ा कोई धर्म नहीं
सीनियर पत्रकार संजय त्रिपाठी की कलम से
“हर तरफ धर्म की हवा और बहस चल रही है। तथाकथित बुद्धिजीवी उपदेश पर उपदेश झाड़े जा रहे हैं। अनुयायी ताली बजा रहे और विपक्षी खामियां ढूँढ़ रहे हैं। हर कोई अपने हिसाब से धर्म की परिभाषा लिखने और गढ़ने में मशगूल है। मैं पीछे क्यों रहूं.. जिंदगी के बेशकीमती साल पत्रकारिता में गुजारे हैं..हमें भी परिभाषा गढ़ने का हक है। तमाम लोग मुझे भी बुद्धिजीवी समझते हैं, हालांकि मैं हूँ नहीं। 35 वर्ष की पत्रकारिता जरूर रही लेकिन दो-चार ही शरीफ लोगों से पाला पड़ा। अधिक वक्त पुलिस और अपराधियों पर ही फोकस किए रहा। नित्यक्रिया, स्नान, ध्यान के बाद घर से निकल कर खबर की तलाश में भटकना। पुलिस और अपराधी के बीच से सच मालूम करके खबर प्रकाशन ही अपना धर्म मानता रहा। मेरी नजर में कोई हिंदू न कोई मुसलमान और न कोई दलित न सवर्ण था। अब बयार चली तो धर्म पर चिंतन करना पड़ा। मेरी समझ से मानवता ही सबसे बड़ा और प्राचीन धर्म है। “प्यासे को पानी पिलाना, किसी को सहारा देना, सही राह दिखाना आदि-आदि को मैं धर्म मानता हूं।
इसी तरह आपने जिस कार्य को चुना या जिस कार्य के लिए आपको चुना गया उसके प्रति समर्पण भी धर्म है। बीमार का उपचार करना चिकित्सक का धर्म है तो शिक्षा देना शिक्षक का धर्म। किसी की जान लेने की इजाजत भले न दे किंतु मातृभूमि की रक्षा के लिए दुश्मन का सीना छलनी करना सरहद पर तैनात सैनिक का धर्म है।
जनता के हक में आवाज बुलंद करना नेता का धर्म और पीड़ित को इन्साफ दिलाने के लिए खबर प्रकाशित करना पत्रकार का धर्म है। इन्साफ करना न्यायाधीश का और पीड़ित का पक्ष प्रस्तुत करना अधिवक्ता का धर्म है। अर्थ युग में अधिक से अधिक कमाने की होड़ में शायद ही कोई अपने धर्म का पालन कर रहा उसे धर्म का पालन करने दिया जा रहा है। तात्पर्य ये है कि धर्म-धर्म चिल्लाते चिल्लाते हम अधर्म की तरफ बढ़ते चले जा रहे हैं। चोरी की तहरीर लेकर थाने से बैरंग लौटते पीड़ित पुलिस के धर्म पर मनन करते नजर आते हैं, अस्पताल से दुत्कारे गए मरीज़ धरती के भगवान का धर्म तलाश रहे हैं। महंगी शिक्षा गुरु के धर्म की पोल खोल रही है। नागरिकों का आवागमन रोककर सड़क पर फर्राटे भरती गाड़ी में बैठे नेता अपने धर्म का ढिंढोरा पीट रहे हैं। एक बाबा ने तो सनातनी की परिभाषा कुम्भ में डुबकी लगाने की गढ़ डाली। कुल मिलाकर हिंदुस्तान में हर कोई अपने तरीके से धर्म की परिभाषा लिखने में मशगूल है और उसके मानकों से इतर सभी अधर्मी हैं।
